आंखें बंद करें और एक लिस्ट बनाएं कि हमारे मन की स्थिति पर कितने लोगों का प्रभाव पड़ता है| किसकी एक शब्द से, किसके व्यवहार से आपके मन में हलचल आ सकती है| कितने लोग हैं? घरवाले, दफ्तर के सहकर्मी या राह चलते लोग भी? जब आप टीवी का रिमोट दूसरे के हाथ में नहीं देना चाहते तो अपने मन का रिमोट किसी दूसरों को क्यों सौंपते हैं?
हम कहते रहते हैं कि मुझे खुशी चाहिए| बार-बार बस यही दोहराते रहते हैं| अपने आप से पूछिए कि आपको खुशी चाहिए या खुशी मेरा संस्कार है? दोनों में से कौन सी बात सच है? “चाहिए” या “वह मेरा संस्कार है”| खुशी दिन-ब-दिन बढ़ने की जगह उतनी ही घटती जा रही है| मतलब जीवन में तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है| टेंशन बढ़ती जा रही है| चिंताएं बढ़ती जा रही है| हमारे पास या तो खुशी हो सकती है या टेंशन हो सकती है, दोनों नहीं हो सकते हैं| हमें खुशी चाहिए नहीं, खुशी दरअसल हमारा संस्कार होनी चाहिए| लेकिन जब चिंता करते हैं, टेंशन करते हैं, परेशान होते हैं, जब तनाव होता है, तो हमें हमारी खुशी अनुभव नहीं होती है| और फिर हम इस खुशी को बाहर ढूंढने निकल पड़ते हैं|
हम सबके पास फोन है| क्या यह फोन आपको खुशी देती है? सालों पहले जिस दिन पहली बार फोन मार्केट में आया था, तो लोग कहते थे यह तो बहुत खुशी देगा| आज वही लोग कहते हैं कि यह फोन तो टेंशन का कारण बन चुका है| लेकिन वास्तविकता क्या है? फोन ना तो खुशी दे सकता है, ना टेंशन दे सकता है| फोन तो सिर्फ एक-दूसरे से बात करने का साधन है| हम यह सोचकर कोई चीज खरीदने जाते हैं कि इससे खुशी आएगी… उससे खुशी आएगी | मतलब जिसके घर जितने ज्यादा साधन होते हैं, उसके घर खुशी भी उतनी ही ज्यादा होती है? ऐसा तो नहीं है ना| मेरा सोफा देखो कितना बड़ा है| आपकी तो कुर्सी छोटी सी है, तो मैं आपसे ज्यादा खुश? बड़ा सोफा है, देखो महंगा भी बहुत होगा, मैं आपसे ज्यादा खुश| हम एक-दूसरे को देखते हैं कि उनके घर यह भी आ गया| उनके घर वह भी चीज आ गई| वह कितने भाग्यशाली हैं| लेकिन वह कितने खुश हैं,यह नहीं पता| उनके मन के अंदर की हालत कैसी है, लेकिन उनको सामान खरीदना हुआ देखकर हम अपनी खुशी गवा देते हैं| एक-दूसरे के साथ तुलना करना, दूसरे की तरह बनने की कोशिश करना…यह सब करते-करते मेरा खुशी का संस्कार घटना गया और उसकी जगह कुछ-कुछ दाग-धब्बे आ गए है|
जैसे कपड़ों को रोज साफ करते हैं, वैसे ही मन पर काम करना है| यह जो शक्ति है आत्मा है, इसके साथ रोज थोड़ा समय बिताना शुरू करें| अपने उस संस्कार और आदत को देखो जिसको बदलना है| कमजोर संस्कार का उच्चारण नहीं करना है| और जो संस्कार लाना चाहते हैं वही सोचाना है| वही बोलना है| बार-बार, हर रोज यह रिपीट करना है कि मैं हमेशा खुश, मैं हमेशा शांत हूं, मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिए, मैं सबको देने वाली हूं|
आपने अपना रिमोट कंट्रोल कितने लोगों के हाथ में दिया हुआ है| आंख बंद करें और लिस्ट बनाएं| कभी-कभी तो ऐसा लगता है सबके पास रिमोट कंट्रोल है| एक उसके पास छोड़कर, जिसके पास होना चाहिए| टीवी का रिमोट कंट्रोल तो किसी को देते नहीं| तो मन का रिमोट कंट्रोल दूसरे के हाथों में क्यों सौंपे? इस पर विचार कीजिएगा|
Very nice
thanks