आइए इस छोटी सी कहानी से समझते हैं की सबसे बड़ा कर्तव्य परोपकार कैसे हैं?
बात उस समय की है जब हमारे देश में मुगलों का साम्राज्य था| राजस्थान के प्रसिद्ध शहर जयपुर में एक व्यक्ति रहता था| एक दिन जब वह व्यक्ति अपने काम में लगा हुआ था, तो उसके पास एक युवक आया और कहने लगा महोदय, ये लीजिए अपने बीस हज़ार आपने बुरे समय में मेरी सहायता की थी और अब मैं इन्हें लौटाने में सक्षम हूं| अतः कृपया आप ये पैसे रख लीजिए| मैं आपका बहुत ही कृतज्ञ हूं|
यह सुनकर वह व्यक्ति धन्यवादपूर्वक युवक को देखते हुए बोले- माफ करना, लेकिन मैंने तो आपको पहचाना नहीं और न मुझे ये याद आ रहा है कि मैंने कभी कोई पैसा आपके दिए थे|
यह सुनकर युवक आश्चर्यचकित होते हुए बोला- आप याद कीजिए एक बार आप चिकित्सालय में गए थे, मैं बहुत बीमार था| मेरे पास पैसे नहीं थे| डॉक्टर ने तुरंत बीस हज़ार रुपये जमा करने के लिए कहा था| मैं बहुत हताश, परेशान था, क्योंकि अगर समय रहते पैसे जमा नहीं होते तो मेरा जीवन रहना संभव नहीं था| उस समय आपने ही पैसे जमा करके मेरे प्राणों की रक्षा की थी| आप कहते हैं कि मुझे तो याद ही नहीं है|
यह सुनकर व्यक्ति अपने बीते दिनों के बारे में सोचने लगा| और थोड़ी देर में उसे याद भी आ गया कि ऐसी घटना हुई थी और मैंने रुपये दिए थे| लेकिन कुछ देर सोचने के बाद वह बोला- मित्र, हां मुझे याद आ गया कि मैंने रुपये दिए थे| परंतु यह तो मनुष्य का स्वाभाविक धर्म, कर्तव्य है कि वह मुसीबत में पड़े हुए प्राणी की सहायता करें|
अतः अब आप इन पैसों को अपने पास ही रखें| हां इतना जरूर करें कि अगर आपको भी कोई जरूरतमंद व्यक्ति मिले तो ये रुपए आप उसको दे दें और अगर आपके पास भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए तो आप भी उस व्यक्ति को यही कहें कि वह भी आगे इसी प्रकार किसी जरूरतमंद की सहायता करें| बस यही हमारा कर्तव्य है, धर्म है|
यह सुनकर वह युवक उनसे अत्यंत प्रभावित हुआ और हकीकत में ही एक दिन उसे एक जरूरतमंद व्यक्ति मिला और उसने उन रुपयों में बीस हज़ार रुपये और मिलाकर उस व्यक्ति की मदद की और उसे भी वही सलाह दी जो उस व्यक्ति ने उसे दी थी| धीरे-धीरे ऐसे लोगों की बहुत बड़ी संख्या हो गई और बहुत सारे पैसे भी इकट्ठे हो गए फिर उन सबने एक चिकित्सालय का निर्माण किया| वहां पर आज भी निशुल्क चिकित्सा प्रदान की जाती है|
शिक्षा
इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है कि हम सबको निःस्वार्थ भाव से एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए| यही सबसे बड़ा धर्म है|