अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष:- पुरुषों के अपेक्षा महिलाओं को अत्यधिक सशक्तिकरण कैसे किया जा सकता है?

“हर नारी के सशक्तिकरण से ही राष्ट्र की उन्नति होती है”

महिला दिवस एक उत्सव ही नहीं, बल्कि एक आंदोलन है, जो महिलाओं को समान अवसर और सम्मान दिलाने की दिशा में कार्य करता है| महिला दिवस की शुरुआत 1908 में न्यूयॉर्क में हुई थी, जब महिलाओं ने अपने काम के घंटे कम करने, बेहतर वेतन और वोट देने के अधिकार की मांग को लेकर एकजुट होकर आवाज उठाई| इसके बाद से महिलाओं के मुद्दों को लेकर 8 मार्च को महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है… आईए इस महिला दिवस पर जानते हैं.. हम पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को अत्यधिक सशक्तिकरण कैसे बना सकते हैं!

                                              महिला सशक्तिकरण का अर्थ किसी महिला की उस क्षमता से है, जिससे उस महिला में वह योग्यता आ जाती है, जिससे वह अपने जीवन से जुड़े सभी महत्वपूर्ण निर्णय स्वयं ले सके, और खुद के बारे में उचित और अनुचित न्याय कर सके| महिलाएं परिवार और समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णय की निर्माता खुद हो सके| हम सुनते आ रहे हैं कि चारों तरफ आजकल महिला सशक्तिकरण की बातें हो रही है और सभी अपने-अपने स्तर पर उसके लिए कार्य भी कर रहे हैं| चाहे वह गवर्नमेंट सेक्टर, प्राइवेट सेक्टर, मीडिया…हो | सरकारी या प्राइवेट क्षेत्र में कोई भी पेशा या व्यवसाय ऐसा नहीं है, जहां पर महिलाओं की भागीदारी न हो, हर क्षेत्र में आज महिला, पुरुष के साथ कदम मिलाकर चल रही है, बल्कि कई क्षेत्रों में तो वह पुरुषों से भी आगे निकल चुकी है|

             परंतु सोचने की बात तो यह है कि क्या इतनी सारी उपलब्धियां हासिल करने के बाद भी महिला सशक्त हुई है? अगर इसका उत्तर हां है, तो आज परिवार क्यों टूट रहे हैं ? ओल्ड इस होम्स की संख्या इतनी क्यों बढ़ती जा रही है? आज सभी सिंगल, न्यूक्लियर फैमिली में क्यों रहना चाहते हैं? संयुक्त परिवार विलुप्त क्यों होते जा रहे हैं? इसके पीछे का कारण क्या है? इन सभी बातों से यह तो सिद्ध हो गया है कि अगर महिला सशक्त हुई होती तो उसका परिवार, उसके रिश्ते सभी सशक्त होते लेकिन आज ऐसा बिल्कुल भी नहीं हो रहा है|

सशक्तिकरण अर्थात निर्णय लेने की योग्यता

महिला सशक्तिकरण शब्द दो शब्दो के मेल से बना है, महिला व सशक्तिकरण| महिला शब्द, नारी या स्त्री के लिए उपयोग किया जाता है| स्त्री कोई शब्द नहीं है बल्कि यह भावना, धैर्य, सहानुभूति, करुणा, रचना, सकारात्मकता, वात्सल्य, अधात्म, कौशल और आत्मसम्मान का नाम है| सशक्तिकरण अर्थात किसी भी क्षेत्र में निर्णय लेने की योग्यता को स्वयं में धारण करना या इस काबिल हो जाना कि हर निर्णय स्वयं ले सके|

स्त्री स्वयं अपनी शक्तियों को आज भूल चुकी है

शक्तिकरण स्वयं में एक ऊर्जावान और शक्तिशाली शब्द है| उसमें “स” लगाने की क्या आवश्यकता है, जो शक्तिकरण को सशक्तिकरण कहा जाता है| ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि स्त्री स्वयं अपनी शक्तियों को आज भूल चुकी है या समाज ने उसे शक्तिहीन बनने पर विवश किया है, यह क्या कह कर की अरे, तुम एक स्त्री हो! ये तुम्हारा काम नहीं है| तुम कुछ नहीं कर सकती हो! तुम करती ही क्या हो, बस रोटियां ही तो बनाती हो आदि-आदि| यह सब कहकर स्त्री स्वरूप को बहुत छोटा आंका है और उसके योग्यता को नग्न समझा है| इन्हीं सब बातों से स्त्री भी स्वयं को बहुत कम, शक्तिहीन समझने लगी और अपने वास्तविक मूल्य को खो बैठी है, अपनी वास्तविक पहचान भूल चुकी है, जिसका दुष्परिणाम उसका परिवार, समाज और संपूर्ण जगत भुगत रहा है| इस बात की भरपाई को संसार के लोग बाहरी महिला सशक्तिकरण द्वारा यथार्थ करना चाहते हैं लेकिन महिला सशक्तिकरण बाहय जगत का नहीं बल्कि आंतरिक जगत का विषय है|

शक्ति स्त्री का गुण है, जो उसमे स्वयं में ही भरपूर है

वास्तव में स्त्री और शक्ति यह दोनों एक ही है| स्त्री ही शक्ति है, तो उसे शक्तिकरण की क्या आवश्यकता! वो तो शक्ति की दाता है, शक्ति की धारक है| इसे इस बात से समझना चाहिए- कि जल को शीतलता कहीं बाहर से प्राप्त नहीं करनी पड़ती है क्योंकि वह उसका निजी गुण है| ऐसे ही शक्ति, स्त्री का गुण है, जो उसमे स्वयं में ही है, वह भी भरपूर| बस, आज स्त्री को उसकी विस्मृति हो गई है| आज वह उस स्थिति से गुजर रही है, जिस स्थिति से यादगार शास्त्र रामायण में हनुमान जी गुजर रहे थे| सारी शक्तियां स्वयं में ही समाहित थी पर उनकी विस्मृति होने के कारण वे स्वयं को एक साधारण वानर समझते थे| उन्हें जब जामवंत के द्वारा उनकी शक्तियों की स्मृति कराई गई, तब उन्होंने समुद्र जैसी विशाल चुनौती को पलभर में ही पार कर लिया और राम जी के कार्य में विशेष सहयोग दिया| अब विचार कीजिए, स्त्री की स्थिति पर, जहां सारी की सारी शक्तियां उसी के अंदर समाहित है|

गृह निर्माण की नींव है नारी,

सृष्टि निर्माण की नींव है नारी,

नवयुग निर्माण की नींव है नारी|

एक नारी यदि अपने गुणों व शक्तियों के प्रति जागृत हो जाती है, तो वह स्वयं से जन्मी संतानों को, अपनी गृहस्थी को, अपने परिवार को जाग्रत करती है| ऐसे कई नारियाँ मिलकर अपने-अपने परिवारों को जागृत करती है| इन जागृत परिवारों से एक जाग्रत सशक्त संगठन बनता है| इन कई संगठनों के मिलने से एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण होता है|

                    इससे सिद्ध है की संपूर्ण राष्ट्र, विश्व की जागृति के लिए अगर किसी बाज की आवश्यकता है, तो वह है एक नारी की जागृति|

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