हर साल फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को भारत में होली का पर्व मनाया जाता है| आपने कभी सोचा है की होली क्यों मनाते हैं? यह सिर्फ रंगो और खुशियों का त्यौहार नहीं, बल्कि इसके पीछे ऐतिहासिक और पौरणिक कहानी छिपी है| होली का मतलब “पवित्रता”,होली अर्थात मैं भगवान की होली (भगवान की हो गई), होली का मतलब बीती बातें खत्म हुई| रंग सभी खेलते हैं… होली में उत्सव सभी मानते हैं| गुलाल खूब लगते हैं.. बहुत अच्छा लगता है… यह रंग बिरंगी गुलाल की होली| इस होली त्यौहार को समझना जरूरी है की हम ये क्यों मनाते हैं? क्या हमें पता है इस पर्व का वास्तविक महत्व क्या है? इस होली त्यौहार का अर्थ क्या है! आईए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी..
राजा हिरण्यकश्यप थे, असुरों के राजा ब्रह्मा जी की उन्होंने उपासना करी और वरदान प्राप्त किए| उन्होंने वरदान मांगा की मृत्यु ना हो मेरी.. ना दिन में ना रात में, ना घर के अंदर ना घर के बाहर, न अस्त्र से न शास्त्र से, न नर द्वारा ना पशु द्वारा, ना धरती पर ना जल पर, ना आकाश में और उन्हें यह वर प्राप्त भी हो गया| हिरण्यकश्यप बहुत प्रसन्न हुए| अहंकार और प्रबल हो गया, अब उन्हें कोई मार नहीं सकता था| पूरे राज्य में घोषणा कर दी की यहां उनके अतिरिक्त किसी और की उपासना नहीं होगी| बल इतना था राजा को ही सबको राजा की बात माननी पड़ी| सिवाय राजा के अपने बेटे के प्रहलाद| उसने कहा मैं तो विष्णु की ही उपासना करूंगा| राजा हिरण्यकश्यप के अहम के लिए यह बड़ी चोट खाने वाली बात थी| पूरी दुनिया उनके यशोगान कर रही है और अपने ही महल में अपना ही बेटा कह रहा है कि नहीं राजा में परमसत्ता आपको नहीं मानता.. मैं तो विष्णु का उपासक हूं, सत्य का उपासक हूं| राजा ने बहुत तरीकों से प्रहलाद को समझाया बहलाया, फुशलाया, डराया, धमकाया प्रहलाद नहीं माना तो अंततः राजा ने अपनी बहन होलिका को कुछ उपाय करने के लिए बुलाया| होलिका ने एक लकड़ियों की बड़ी चिता समान तैयार करवाई और उसे पर प्रहलाद को लेकर बैठ गई| होलिका को सिद्ध थी की अग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती| अपेक्षा यह की थी हिरण्यकश्यप ने और होलिका ने की लकड़िया जलेगी और उनके साथ प्रहलाद भस्म हो जाएगा| होलिका को तो सिद्धि प्राप्त है उसको कुछ नहीं हो सकता, हुआ उसका उल्टा भगवान की कृपा से प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ| होलिका भस्मीभूत हो गई| हिरण्यकश्यप यह देखकर के क्रोध से विक्षिप्त हो गया| उसने एक लोहे का खंभा गर्म करवाया और प्रहलाद से कहा जरा इस लोहे के खंभे को गले लगा ले देखता हूं अब तेरा विष्णु कैसे बचाता है तुझे| प्रह्लाद ने खंभे को गले लगाया और खंभे से विष्णु अपने नरसिंह अवतार में प्रकट हुए| आधे सिंह थे, आधे नर थे हिरण्यकश्यप के तरफ बढ़े उसे पकड़ गोधूलिबेला थी ना दिन था ना रात थी बीच का समय था| हिरण्यकश्यप को उठाकर के महल के प्रवेश द्वार के चौखट पर ले गए.. ना महल के अंदर, ना बाहर और फिर अपने पंजे से बघनखों से हिरण्यकश्यप का हृदय फाड़ दिया| अपनी गोद में बिठाकर ना धरा में, ना आकाश में अपनी गोद पर बिठाकर ना अस्त्र से ना शास्त्र से, ना घर के अंदर ना घर के बाहर, ना दिन में ना रात में, न नर द्वारा ना पशु द्वारा, आधे नर ,आधे पशु थे| सब शर्ते पूरी हुई.. हिरण्यकश्यप का वध हुआ| सत्य जीता, श्रद्धा जीती, अहंकार हारा|
यह है होली की त्यौहार के पीछे की कहानी… इस कहानी से क्या पता चलता है हमें?
पहला सिख हिरण्यकश्यप की इस कहानी से
इस कहानी से हमें पता चलता है कि अहंकार साधना भी करेगा तो इसलिए नहीं करेगा कि वह विसर्जित हो जाए, मिट जाए वह साधन भी करेगा, श्रम भी करेगा तो इसलिए करेगा कि वह बचा रहे बल्कि अमर हो जाए| हिरण्यकश्यप ने बड़ी साधना करी और साधना करके वरदान यही मांगा कि वह अमर हो जाए| उसे किसी भी तरीके से मृत्यु ना आए|
हम भी बहुत श्रम करते हैं बड़ी मेहनत करते हैं आम आदमी की जिंदगी देखिये सुबह से शाम तक मेहनत ही करता रहता है यह जानना जरूरी है कि वो मेहनत कर किस लिए रहा है| सत्य के सामने नामित होने के लिए या फिर अपनी अहंकार को ही और बढ़ाने के लिए| हिरण्यकश्यप कितनी साधना की लेकिन किस लिए| इसलिए नहीं की प्रभु से ही मिल जाए, सच के सामने झुक जाए, जीवन को सार्थक कर ले पूरी साधना करके चाहा उसने यही कि उसका शरीर अमर हो जाए, उसकी अपनी व्यक्तिगत सत्ता अमर हो जाए| सिर्फ मेहनत करना काफी नहीं, श्रम या साधना करना काफी नहीं है| यह देखना भी जरूरी है किसके लिए मेहनत कर रहे हो, उद्देश्य क्या है? मेहनत के पीछे कौन बैठा है?
दूसरी सिख हिरण्यकश्यप कि इस कहानी से
अहम को जो कुछ भी मिलेगा उसका इस्तेमाल वह स्वयं को बढ़ाने के लिए ही करेगा| दूसरों के कल्याण के लिए नहीं, अपने स्वार्थ के लिए ही करेगा| बड़ी-से-बड़ी शक्ति और सिद्धि उपलब्ध हो गई थी हिरण्यकश्यप को| मृत्यु का भय मृत्यु का खतरा आदमी के सामने सबसे बड़ा खतरा होता है| हिरण्यकश्यप का वही खतरा टल गया था| वो उँचे-से-उँचा काम कर सकता था जगत की तमाम बुराइयों से लड़ सकता था| संसार को स्वर्ग के अभियान पर निकल सकता था लेकिन हिरण्यकश्यप ने इस ताकत का उपयोग किया तो किसलिए स्वयं भगवान बन जाने के लिए|
सीख क्या मिलती है हमें अगर गलत हाथों में ऊंची-सी-ऊंची चीज पड़ जाए, बड़ी-से-बड़ी शक्ति भी पड़ जाए तो उसका दुरुपयोग ही होगा| हम सब भी अपने लिए बहुत कुछ अर्जित करना चाहते हैं| अपने प्रिय जनों के लिए बहुत कुछ अर्जित करना चाहते हैं लेकिन अर्जित करने से पहले अपनी शक्ति बढ़ाने से पहले दूसरों की सामर्थ बढ़ने से पहले यह जरूर देख ले की कौन है जिसकी शक्ति बढ़ने जा रही है? किन हाथों में सत्ता दी जा रही है| शक्ति दो धारी तलवार है उसका इस्तेमाल ऊंचे-से-ऊंचे पुण्य के लिए भी हो सकता है और और बड़े-से-बड़े पाप के लिए भी शक्ति बहुत आवश्यक है कि उन्हें हाथों में रहे जो पुण्य की प्रेरणा से चले|
तीसरी सिख हिरण्यकश्यप कि इस कहानी से
ये रिश्ते की संबंधों की बात है और होली पर तो हम संबंधों का ही उत्सव बनाते हैं| मित्रों से यारों से मिलते हैं… सबको रंग लगाते हैं गले मिलते हैं| संध्या समय समाज में जिनको भी जानते हैं उन सब से मिलते हैं, बैठते हैं| पर संबंध किससे, संबंध कैसे, संबंध का आधार क्या? यह जानना जरूरी है… हम प्रहलाद को देखें पिता से जन्म का रिश्ता था, बहुत निकट का रिश्ता था, शरीर का रिश्ता था लेकिन प्रहलाद ने कहां सत्य से मेरा जो रिश्ता है वो पिता से मेरे रिश्ते से ज्यादा महत्वपूर्ण है| हिरण्यकश्यप मात्र पिता है मेरे, सत्य परमपिता है जिस प्रहलाद की स्मृति में जिस प्रहलाद के सम्मान में होली का त्यौहार हम मानते हैं उस प्रहलाद का भाव देखिए| उस प्रहलाद की श्रद्धा देखिए वो कह रहा है पिता मेरे कितने भी बलशाली हो मैं अपने ही पिता के खिलाफ खड़ा हो जाऊंगा अगर वो सत्य की अभेलना कर रहे हैं |अगर वह सच्चाई के विरुद्ध जा रहे हैं और प्रहलाद बालक मात्र है और क्या ताकत है उसके पास कुछ नहीं| पर सामने उसके अत्यंत बलशाली राजा है और उसके सामने पिता है, पिता का मोह है, पिता के प्रति जो प्राकृतिक आकर्षण होता है वो है लेकिन वो बच्चा रक्त के सबंध की परवाह नहीं करता | वो कहता झुकूंगा तो सिर्फ सच के सामने|
तो जब हम दोस्तों यारों संबंधियों के पास जाएं होली में तो सदा याद रखें पहला संबंध हमें प्रहलाद ने सिखाया है कि सत्य के साथ होना चाहिए बाकी सब संबंध पीछे के हैं| होलिका की चालाकी ही उसे अंत तक ले गई| यही सीख है जो जितना चालक होगा वह अपनी चालाकी के द्वारा ही जल मारेगा| बड़ी-सी-बड़ी चालाकी निर्दोष, मासूमियत के सामने छोटी है|
जब आप होली का त्यौहार मना रहे हो तो अपनी चालाकी को जरा पीछे छोड़ दीजिएगा| हमें ऐसा लगता जो जितना चालाक वह जीवन में उतना आगे बढ़ेगा| ये बात झूठी है… एक सीमा तक चालाकी की जाती है उसके बाद वो अपना काल स्वयं बन जाती है, अपनी ज्वाला में स्वयं जल जाती है|
किसी न किसी अर्थ में हम सब हिरण्यकश्यप है, किसी न किसी अर्थ में हम सबके भीतर नन्हा प्रहलाद भी बैठा हुआ है, होली का अवसर इसलिए है कि हम अपनी भीतर के प्रहलाद को जागृत करें| हिरण्यकश्यप और होलिका को स्वयं से दूर करें… सब है हम में :- हिरण्यकश्यप का अहंकार है, होलिका जैसी चालाकी है और प्रहलाद की निर्मलता, निर्दोष भी है हम में.. हम सब होली खेले तो बाहर के रंगों के साथ-साथ भीतर उसका (भगवान) भी सिमरन करते रहे… और अपने भीतर वह सातों गुणों(peace, love, happiness, knowledge, power, purity, bliss) भरे ले जैसे बाहर से सातों रंग से होली खेलते हैं| यही हमारे लिए वास्तविक होली मनाना होगा|