ईर्ष्या क्या है ? क्या आपको पता है… ईर्ष्या हमारी खुशियों को जला देती है!

ज हम चारों तरफ देखते हैं कि हर जगह, हर मनुष्य के मन में कोई-न-कोई आग लगी हुई है | कहीं लालसा की तो कहीं अभिमान की अग्नि| इन सब अग्नियों के अलावा एक और आग ऐसी भी है, जो मनुष्य के दुःख और असफलता का कारण बनी हुई है| वो आग है, ईर्ष्या की आग ,जिसने मनुष्य को सफलता से दूर तथा दुःख और पराजय के करीब ला कर खड़ा कर दिया है तथा संबंधों को बिखेर कर रख दिया है| ईर्ष्या की आग बहुत ही खतरनाक है, इस आग में हमारे सजे-सजाए सपने पूरे होने से पहले ही जलकर राख हो जाते हैं| हमारा लक्ष्य सिर्फ हमारे ख्यालों तक ही रह जाता है| हमारी मंजिल आईने के प्रतिबिंब की तरह हो जाती है, जिसे हम देख तो सकते हैं पर छू नहीं सकते| ये ईर्ष्या का संस्कार अधिकांश लोगों में पाया जाता है, किसी-किसी के अंदर इतने सूक्ष्म रूप में होता है कि वह व्यक्ति स्वीकार करने से भी इंकार कर देता है|

ईर्ष्या किससे होती है?

जब एक व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति से स्वयं को किसी क्षेत्र, पद, प्रतिष्ठा, सम्पन्नता या सुविधा इत्यादि में कम आंकता है, तब ईर्ष्या अपना प्रभाव दिखाना प्रारंभ करती है| सामान्य तौर पर व्यक्ति को ईर्ष्या अपने समीपवर्ती लोगों की सफलता से होती है| परंतु एक बात का हमें विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जिस चीज से व्यक्ति ईर्ष्या करता है, वह चीज उसके अपने जीवन से दूर होने लगती है, चाहे वह किसी की सफलता हो, प्रगति हो या किसी की खुशी हो|

जब तक किसी व्यक्ति, संगठन या संस्था को सफल होते देख, अपने मन में उसकी असफलता के संकल्प करने लगते हैं तथा उसकी सफलता पर दुख जाहिर करने लगते हैं तब समझ लीजिए कि हमारी अपनी आंतरिक शक्तियों तेजी से क्षीण होने लगी है क्योंकि इस परिस्थिति में हम अपने मन की ऊर्जा को स्वयं प्रति सफल करने के बजाय दूसरे को असफल करने में लगा रहे हैं| इसलिए हमारी सफलता और खुशी भी हमसे दूर होने लगती है|

 

आंतरिक शक्तियो का नाश

 

ईर्ष्या हमारे अंतर्मन में छिपी असीम शक्तियों को धीरे-धीरे जलाकर नष्ट कर देती है जिससे अंतर्मन पूरी तरह से खोखला और शक्तिहीन हो जाता है| फिर हम स्वयं को कमजोर व शक्तिहीन अनुभव करने लगते हैं, जिससे हमारे सफलता के मार्ग में आने वाली चुनौतियों और बाधाओं का हम ठीक से सामना भी नहीं कर पाते, परिणाम असफलता के रूप में हमारे समक्ष रहता है|

ईर्ष्या से बचना आसान है

अवचेतन मन का सिद्धांत व आकर्षण का नियम तो यही सिखाता है कि हम जिस चीज को सराहना करते हैं या पसंद करने लगते हैं वह हमारी तरफ आकर्षित होने लगती है| जब हम किसी की खुशी, सफलता या उपलब्धि के लिए उसको सच्चे मन से बधाई देते हैं या सराहना करते हैं, तो हम भी उसकी खुशी का हिस्सा बन जाते हैं| यधपि वो सफलता हमें नहीं मिली हो, फिर भी हम उसका अनुभव करने लगते हैं, फलस्वरूप हमारे मन की शक्ति कम होने के बजाय और ही बढ़ने लगती है और हमारा जीवन खुशी की तरफ, सफलता की तरफ तथा उपलब्धियां की तरफ अग्रसर होने लगता है|

 

ईर्ष्या से बचने के उपाय क्या हैं:-

स्वीकार करें

सबसे पहले इस भावना को स्वीकार करें| इसे दबाने या इनकार करने से या बढ़ सकती है|

तुलना बंद करें

दूसरों से तुलना करना छोड़कर खुद पर ध्यान दें| हर कोई विशेष होता है और उनमें अनूठी काबिलियत होती है|

ध्यान और योग

मानसिक शांति पाने के लिए मेडिटेशन करें| इससे शांत रहकर सोचने-समझने की शक्ति बढ़ेगी और खुद पर काम कर सकेंगे|

थैंकफूल रहे

जो कुछ भी आपके पास है उसके लिए कृतज्ञ बने और जो नहीं है उसके लिए पूरे मन से प्रयास करें|

खुद को समय दें

अपनी कमजोरी को सुधारने के लिए खुद को समय दें| खुद पर लगातार काम करने से आप मेहनत का महत्व समझेंगे| इससे आपमें दूसरों की प्रशंसा करने की भावना भी पैदा होगी|

 रिश्ते सुधारे

जिस व्यक्ति से आपको ईर्ष्या हो रही है, उसके साथ बातचीत करें और उससे सीखने की कोशिश करें|

                ईर्ष्या एक सामान्य हुमन इमोशंस है, लेकिन इसे सही तरीके से समझना और संभालना जरूरी है| यह हमें बेहतर बनने के लिए प्रेरित कर सकती है, लेकिन अगर इसे नियंत्रण में ना रखा जाए, तो लाइफ में कई सारी परेशानियां हो सकती है| याद रखें, हर इंसान अपनी जिंदगी में स्पेशल है| किसी की खुशी देखकर खुश होना सीखे, क्योंकि दूसरों की सफलता आपकी हार नहीं है|

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