अपने relationship को बनाए मजबूत और शानदार… एक टिप्स से ………

भगवान हमें हर कर्म करने का ज्ञान देते हैं| उसे कर्म पर चलने की शक्ति देते हैं, हमें प्यार देते हैं लेकिन कर्म तो हमें ही करना है| इसमें दो ही चीजें जीवन में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं| और वो दो चीजें हैं हमारे कर्म और हमारे संस्कार|

बचपन में हमने सुना था कि जैसा कर्म करेंगे वैसा फल मिलेगा| हमारे कर्मों से हमारा भाग लिखा जाता है| हमारे पास एक विकल्प ये है कि भगवान भाग्य लिखता है और दूसरा विकल्प कहता है कि मेरी कर्म मेरा भाग्य लिखते हैं| सवाल है कि दोनों में से कौन-सा सही है? जब भी हमारे जीवन में कोई संकल्प आता है, कोई बात आती है तो हम उसका इल्जाम ऊपर वाले पर डाल देते हैं| अगर हमारे मन मुताबिक काम नहीं होता या अगर वह बात ठीक नहीं होती है तो हम उससे नाराज हो जाते हैं| जिस परिस्थिति में हमें भगवान की शक्ति की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, हम उनसे ही किनारा कर लेते हैं| और कहते हैं ऐसा भगवान हमें चाहिए ही नहीं| क्योंकि हमारे पास एक गलत बिलीफ सिस्टम था कि उसने ये भाग्य लिखा| ऊपर वाले को मैंने इतना बोला ठीक करने के लिए फिर भी उन्होंने हमारी बात नहीं मानी|

एक गलत मान्यता हमारे जीवन जीने का तरीका बदल देती है| आज से यह पक्का करते हैं कि मेरा भाग्य किसने लिखा, अगर मुझे अपने भाग्य में कुछ बदलना है तो मुझे किसके पास जाना है? जब हमें खुद के पास आना है तो परमात्मा का क्या रोल है| अगर मैं अपना भाग्य स्वयं ही लिखता हूं या लिखती हूं तो फिर इसमें परमात्मा की क्या भूमिका है? मेरा सवाल है कि आपका आपके बच्चों के भाग्य में क्या रोल है? आप अपने बच्चों को शिक्षा देते हैं ऐसा करो, ऐसा नहीं करो मतलब ज्ञान देते हैं| आप अपने बच्चों को शक्ति देते हैं, सहयोग देते हैं और कहते हैं मैं आपके साथ बैठा हूं| आप अपने बच्चों को प्यार देते हैं लेकिन बच्चों का कर्म कौन करता है? जब वो कर्म करते हैं और उसका परिणाम मिलता है तो आप उस कर्म के परिणाम को अपने बच्चों के जीवन में आने से रोक सकते हैं? नहीं रोक सकते हैं ना| तब भी आप बच्चे को परिणाम का सामना करने का ज्ञान देते हैं, राय देते हैं| उसका सामना करने की शक्ति देते हैं, प्यार देते हैं लेकिन परिणाम का सामना तो उस बच्चे को ही करना है|

बिल्कुल यही रिश्ता हमारा और परमात्मा का है| परमात्मा हमें हर कर्म करने का ज्ञान देते हैं| उस कर्म पर चलने की शक्ति देते हैं, हमें प्यार देते हैं लेकिन कर्म तो हमें ही करना है| इसमें दो ही चीजें जीवन में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है| और वह दो चीज हैं हमारे कर्म और हमारे संस्कार| क्योंकि संस्कार से ही कर्म बनेगा| हमारे हर कर्म और संस्कार आत्मा में रिकॉर्ड होते जा रहे हैं| आत्मा शरीर छोड़ती है तो नया शरीर लेती है| उसे बच्चे को फिर से नर्सरी में जाना पड़ता है| सिर्फ एक चीज है जो साथ जाएगी, वह है कर्म और संस्कार| वह आत्मा एक शरीर छोड़ेगी दूसरा शरीर लगी| छोटा सा बच्चा पैदा होता है| वो संस्कार अपने साथ लेकर जाता है| जिस दिन वो बच्चा पैदा होता है जन्मपत्री भी उसी दिन बन जाती है| वो जन्मपत्री कर्म, संस्कार के आधार पर बनती है| उसी क्षण, एक ही अस्पताल में दो बच्चे पैदा होते हैं, ग्रह वही है, नक्षत्र भी वही है लेकिन दोनों का भाग्य अलग-अलग होता है|

आपमें से जिनके दो बच्चे हैं क्या आपको महसूस होता है कि दो बच्चों के संस्कार बहुत अलग-अलग है| कई बार तो जुड़वा बच्चे हैं, दिखने में भी एक समान है लेकिन संस्कारों और भाग्य बिल्कुल अलग-अलग है| क्योंकि उनके वर्तमान में सबकुछ एक जैसा है| घर वही, परिवार भी वही, स्कूल भी वही, सबकुछ एकदम वही लेकिन उन दोनों का अतीत अलग-अलग है| वो अलग-अलग कर्म और संस्कार लेकर आए हैं| तो यही दो चीजें हैं जो अविनाशी है| हमेशा हमारे साथ रहेगी| एक और चीज हम पीछे छोड़कर आते हैं,वो सारी बातें जिनको हमने शरीर में रहते हुए बहुत बड़ा बना दिया था| एक सेकंड में वो सारी बातें पीछे छूट जाती है| अगर हमें ये याद रहे कि वो आत्मा में रिकॉर्ड हो रही है तो हम किसी भी बात को बड़ा बनाने की बजाय बड़ी बात को छोटा बनाकर फिनिश कर देंगे|

अगर हम बड़ी बात को छोटा बनाने की आदत डाल ले तो हमारी बहुत शक्ति बच सकती है.. जब हम एक छोटी सी बात को विस्तार करके बड़ा बनाते हैं उसमें हमारी बहुत सारी एनर्जी लॉस हो जाती है.. और हम छोटी-छोटी बात पर इरिटेट, गुस्सा होते रहते हैं| इसलिए जितना हो सके हमें कोई भी बात को खींचने की बजाय उसे छोटा करना सीखना चाहिए। बड़ी बात को छोटा बनाना चाहिए.. और छोटी बनाकर हल्का हो जाना चाहिए| इससे हम हमेशा खुश रहेंगे.. और हमारे हरेक रिश्ते में प्यार और अपनापन बना रहेगा|

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