हमें दूसरों पर ध्यान देने के बजाय… खुद पर पहले पूरा ध्यान देना चाहिए…

हम कितना भी कर ले, लेकिन खुशी क्यों नहीं मिल रही है? क्योंकि जहां तक भी पहुंचते हैं, वहां कोई ना कोई आगे खड़ा रहता है| आप किस-किस से आगे जाएंगे? ये आपका जीवन है, लकिन सबसे जरुरी है कि आपके जीवन जीने का तरीका और परिवार की प्राथमिकताएं क्या है| वो क्या चाहते हैं, मैं क्या चाहता हूं, पहले पहुंच भी गए और अकेले हैं तो कौन सी खुशी!

एक क्षण रुके और सोचे कि किस स्कूल में लिखा है कि एक ही बच्चा अव्वल आ सकता है? हर बच्चा फर्स्ट आ सकता है, बस सोचने की जरूरत है कि ये प्रतिस्पर्धा कहां और किससे है| आपकी जितनी वास्तविक क्षमताएं हैं, उससे कहीं ज्यादा पढ़ो| पढ़कर जितना हासिल करना चाहते हो, उतना हासिल करो| इधर-उधर देखने की क्या जरूरत है? आपकी नौकरी है, आपका बिजनेस है, आपका पेशा है और यह आपकी ही यात्रा है, जितनी मेहनत कर सकते हैं करें| अपने लिए जितना ऊंचा गोल सेट कर सकते हैं करें| लेकिन दूसरे को देखकर हमें प्रतिस्पर्धा नहीं करनी चाहिए| हरेक का अपना काम करने का तरीका होता है| आपको तय करना है कि आपका तरीका कैसा है, बस उसे समझौता न करें| खुद के लिए तय करें कि ये मेरा लक्ष्य है, ये उद्देश्य है, मैं अपना सर्वश्रेष्ठ दे रहा हूं| ये भी गोल रख सकते हैं मैं इस दुनिया का सबसे अच्छा डॉक्टर हूं, सबसे अच्छा एक्टर हूं, फिर उसे बेस्ट पर फोकस करते हुए चले| यहां किसी दूसरे से दौड़ या कंपटीशन नहीं करना है| यदि हमने यह सोच लिया कि मैं इससे अच्छा हूँ तो यह हमारी बहुत बड़ी गलती होगी| कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनकी क्षमता ज्यादा है लेकिन वह उतना प्रयास ही नहीं करते, वह सिर्फ यह देखकर खुश है कि मैं  इनसे-इनसे आगे हूं|

अपना गोल सेट कर ले कि मुझे ये-ये करना है, लेकिन किस तरह से करना है यह मुझे तय करना है| मान लो आप तीन दोस्त एक ही बिजनेस कर रहे हैं, लेकिन एक की प्राथमिकता है कि वो अपने परिवार के साथ ज्यादा वक्त बिताए, बाकी दोनों की नहीं है| जो अपने परिवार के साथ ज्यादा वक्त बिता रहा है, हो सकता है उसका मुनाफा थोड़ा काम हो लेकिन वह उतना ध्यान नहीं दे रहा है| वह 6:00 बजे घर आ जाता है| क्योंकि यह चुनाव उसने अपने लिए किया है, ये उसके काम करने की शैली है, उसका किसी के साथ कंपटीशन नहीं है|

                                आज अधिकांश लोग यही करते हैं, सब कुछ आ गया, सब कुछ मिल गया, लेकिन अंदर कुछ-कुछ खाली है}| अंदर खाली क्या है? असुरक्षा की भावना | असुरक्षा है कि कहीं ये सब कुछ हमारे हाथ से निकल ना जाए| वो खालीपन क्यों है अंदर? सच्चाई ये है कि हम भरे हुए थे, हमने बहुत कुछ कर लिया कर दिया, जिससे हम खाली हो गए| जिंदगी के हर कदम पर चलते हुए आपने कहा कि प्रतिस्पर्धा है, दौड़ है… यह बोलकर तनाव पैदा किया और अंदर से खाली होते गए, कोई रास्ते में आया तो अलग-अलग तरीके अपनाए| जीने की तरीकों में अपने सिद्धांत से समझौता किया, इस तरह आप खाली होते गए| आप चिड़चिड़ाएं, गुस्सा किया आप खाली होते गए|

           मान लो, जीवन यात्रा शुरू करते समय भरा हुआ गिलास हाथ में है| अगर जीवन की यात्रा अपने-आपको भरने की प्रक्रिया होती तो बच्चा कैसा होना चाहिए था! बिल्कुल खाली और हम अपने अंतिम दिनों में कैसे होने चाहिए थे, बिल्कुल भरे हुए| खुशियां, उत्साह, उमंग से भरे हुए| लेकिन ऐसा होता नहीं है| बच्चों को देखकर आज भी इतना आकर्षण क्यों होता है| क्योंकि वो बच्चा ऊर्जा, संभावनाओं से भरा हुआ है| लेकिन धीरे-धीरे हम उसको सिखाना शुरू करते हैं और धीरे-धीरे उसको भी खाली करना शुरू कर देते हैं| बच्चों को कोई टेंशन नहीं है लेकिन हम कहते हैं तुम्हें टेंशन होना चाहिए, बच्चों को डर नहीं लगता लेकिन हम उसको डरना सीखते हैं| बच्चे के पास ना चिंता है, ना डर है और ना ही गुस्सा| यह तीन चीजें हैं, जो हमें खाली करती है| जीवन की यात्रा में ये तीन चीजें हम सीखने जाते हैं और सीखते-सीखते खाली होते जाते हैं क्योंकि हम सोच रहे थे बाहर से जो सब कुछ मिलेगा वह हमें भरेगा|

       हमें ध्यान यह रखना था कि अंदर वाला जो भरा हुआ था वह भरा हुआ रहकर बाहर वाला हासिल करना था| लेकिन हम अटेंशन किस पर रख रहे थे कि दूसरे लोग क्या कर रहे हैं| इधर-उधर देखेंगे तो गिलास खाली हो जाएगा| हमें सब कुछ हासिल करना है लेकिन एक नजर अपने ऊपर भी रखना है| हमें अपने दिनचर्या का कुछ समय खुद के लिए निकलकर खुद के मन को समझना है… उस से बातें करनी है हमें क्या चाहिए… मैं किस में खुश हूं? मेरा लक्ष्य मेरे लिए कितना जरूरी है? मैं क्या करूं जो इस लक्ष्य को जल्द से जल्द प्राप्त कर सकूँ… मुझे किसी से प्रतिस्पर्धा करने की कोई जरूरत नहीं! यह मेरा लक्ष्य है… इसे मैं कैसे प्राप्त कर सकता हूं? मैं अपना लक्ष्य को कितना समय दे रहा हूं! अपना सर्वश्रेष्ठ दे रहा हूं या नहीं…

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