ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए,
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।
शब्द संभल कर बोलिए, शब्द के हाथ न पाव,
एक शब्द औषध बने एक शब्द करे घाव |
हम जानते हैं की कमान से निकला तीर और मुख से निकले बोल कभी वापस नहीं आते, पहले हमें तोलना चाहिए फिर बोलना चाहिए| इस तरह के कितने ही सुंदर दोहे व सुवाक्या हम प्रतिदिन अखबारों में, पुस्तकों में, सोशल साइट्स में पढ़ते या फिर संत- महात्माओं के प्रवचनों को सुनते हैं परंतु , हम देखते हैं कि इस तरह के महान विचारों के बाद भी हम, क्रोध कर कड़वे शब्दों का प्रयोग करके अनेकों को दुःख पहुंचाते हैं और खुद भी शक्ति को खो देते हैं | बुरा तो तब लगता है जब बुद्धिमान, जिम्मेदार या महान समझे जाने वाले लोग भी क्रोध कर अपने से छोटे या फिर नौकर पर इस तरह के कड़वे बोल बोलते हैं |जो बातें चार शब्दों में हो जाती उनके लिए कई कड़वे शब्दों का प्रयोग कर अपनी शक्ति को गवाते रहते हैं| कहां जाता है की चोट का घाव तो भर जाता है लेकिन कड़वे बोल का घाव जीवन भर नहीं भरता है|
क्रोध आने के मूल कारण :-
प्रश्न उठता है कि क्रोध क्यों आता है ? क्रोध आने का मूल कारण हमारे अंदर छिपा अभिमान है…. इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं:-
जैसे:- जब कोई हमारी बात नहीं मानता, बार-बार कहने पर भी ठीक से काम नहीं करता, जब कोई हमारी निंदा या चुगली करता है, जब हमारे अंदर छिपा अहंकार को ठेस पहुंचाता है, जब कोई हमारे मुताबिक काम नहीं करता, हमारे विरुद्ध काम करता है, काम करके आए थके हुए हैं आने के बाद समय से खाना या पानी नहीं मिलता है, बच्चे ठीक से नहीं रहते तंग करते या चंचलता करते हैं, जब हमारे मन में किसी के प्रति ईर्ष्या,घृणा या बदला लेने की भावना हो, जब कोई हमारा काम बिगाड़ दे, जब हमारे अपने गलत काम करते हैं, जब कोई हमारी नींद डिस्टर्ब कर दे, कोई हमें बार-बार परेशान करता है, जब कोई हमसे अनुचित बहस करता है, जब कोई हमारी मासूमियत का अनुचित लाभ उठाता है इत्यादि…….
क्रोध से कई नुकसान हो देखते हैं :-
कहा जाता है कि क्रोध हमेशा मूर्खता से शुरू होकर पश्चाताप पर खत्म होता है | एक पल के क्रोध पर नियंत्रण नहीं होने के कारण व्यक्ति से बहुत बड़े अपराध हो जाते हैं और वह जीवन भर सलाखों के पीछे पश्चाताप ही करता रहता है| इसके अलावा क्रोध से और भी कई नुकसान है….
जैसे:- क्रोध हमारे अंदर की शक्तियों को खत्म कर देता है, क्रोध से एकाग्रता नष्ट हो जाती है, क्रोध से संबंधों में मन- मुटाव आती है, क्रोध से दुःख ही दुःख मिलता है, क्रोध से जीवन नीरस, असंतुष्ट हो जाता है, बने-बनाए कार्य को क्रोध बिगाड़ देता है, क्रोध से संबंध टूट जाते हैं, क्रोध अनेक बीमारियों को जन्म देता है, क्रोध करने वाले व्यक्ति से हर कोई दूर रहना चाहता है|
क्रोध को हम कैसे नियंत्रित करें:-
क्रोध का निवारण करने के लिए मन में धैर्य की शक्ति बनाएं रखना बहुत जरूरी है और यह तभी संभव हो सकता है जब हम अपने लाइफ-स्टाइल में नियमित मेडिटेशन (ध्यान), योग का अभ्यास को शामिल करें| कहां जाता है कि दुनिया में ऐसा कोई ताला नहीं है जिसकी कोई चाबी ना हो| समस्या है तो उसका समाधान भी आवश्य है|
क्रोध पर विजय पाने के लिए हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना होगा:-
- 5 मिनट दूसरों की बात सुनने के लिए रुके, इससे हमारे अंदर धैर्यता का गुण बढ़ेगा|
- तुरंत उत्तर देना बहादुरी नहीं है, ऐसा उतावलापन हानिकारक हो सकता है|
- क्षमाशील बन हमें दूसरों की गलतियों को क्षमा करते चलना चाहिए.. ऐसी कई गलतियां हमसे भी हो सकती है..क्षमा करना ही महान व्यक्ति का गुण है |
- क्रोध करने से पहले दूसरों की स्थिति -परस्थिति का ध्यान रखें कि वह व्यक्ति न जाने किस समस्या में हो या उसके साथ क्या बीती हो, यदि हम भी उस पर क्रोध करेंगे तो उस व्यक्ति पर क्या बीतेगी|
- सदा याद रहे, झुकना ही महानता है.. झुकना कमजोरी नहीं है| कहते हैं कि फल से लदा वृक्ष और गुणवान मनुष्य ही झुकते हैं| झुकना मनुष्य की शान है और अकड़े रहना मुर्दे की पहचान है| क्रोध की अग्नि को शांति की शीतलता के द्वारा बुझा सकते हैं |
- हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हमारे मुख से निकला हुआ मधुर बोल सहयोग व रहम का बोल, कोई बेसहारा को सहारा दे सकता है| अतः अब हमें स्वयं ही निर्णय करना है कि हम मीठे बोल का प्रयोग कर अनेक लोगों के दिलों में जगह बना सकते हैं, उनसे दुआएं ले सकते हैं या फिर कड़वे बोल से अनेक लोगों के दिल को दुखा सकते हैं बददुआएं ले सकते हैं|