रिश्ते का मतलब बस देना… देना…
एनर्जी का इक्वेशन यह नहीं है कि मैं दिया और मैं आपसे लिया, नहीं|
एनर्जी का इक्वेशन है मैंने आपको दिया और देते समय वो मुझसे फ्लो होता हुआ आपके पास गया|
हमारे हर थॉट पर ही हमारा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य निर्भर करता है|
आइए जानते है रिश्ते को कैसे टूटने से बचा सकते है और इसे कैसे ब्यूटीफुल बना सकते है
आज हम रिश्ते में बहुत मेहनत करते हैं क्योंकि हम रिश्ते में बोलते क्या है, व्यवहार क्या करते, हैं एक- दूसरे के लिए करते क्या है, उस पर बहुत मेहनत करते हैं| हम सोचते हैं क्या है एक-दूसरे के लिए हम उस पर ध्यान नहीं देते और इसलिए इतनी मेहनत करने के बावजूद भी रिश्ते थोड़े से बिखरते जा रहे हैं| आजकल मिसअंडरस्टैंडिंग जल्दी हो जाती है, गांठे जल्दी आ जाती है| फिर गांठे आ गई तो खोलते नहीं है, बातों को पकड़ कर रखते हैं| झुकने की शक्ति नहीं है, बात को खत्म करने की ताकत नहीं है, क्षमा करना मुश्किल लगता है इसलिए रिश्ते बिखरते जा रहे हैं| और वह सब डायवोर्स जो 25- 30 साल पहले बहुत ही कम हुआ करता था, होता था तो लोग बताते भी नहीं थे| लेकिन आज आम होने लग गया| 25-30 साल से दिख रहा है कि समाज में परिवर्तन किस डायरेक्शन में जाता है| तो 20 साल पहले तक ठोस कारण होता था कि क्यों अलग होना है और बड़े-बड़े रीजन होते थे| फिर 10 साल पहले तक छोटे-छोटे रीजन में भी, नहीं हमें नहीं रहना, इतनी सी बात में हम नहीं एडजस्ट कर सकते इतना, कहते हैं हमें नहीं करना इनके साथ| क्यों नहीं रहना? तो बस नहीं रहना| कोई रीज़न होगा ना, ऐसे कैसे नहीं रहना! मुझे इस रिश्ते में इनके साथ कुछ नहीं मिल रहा है, सामने वाला कहता है मुझे भी नहीं मिल रहा है| और जब मिल नहीं रहा तो क्यों रहना, क्यों इतना एडजस्ट करना, जब मिल नहीं रहा है| क्योंकि इस रिश्ते में किस लिए गए हैं? लेने के लिए|
रिश्ते में किस डायरेक्शन में जाना चाहिए? रिश्ते में किस डायरेक्शन में हाथ होना चाहिए? लेने के लिए या देने के लिए? रिश्ता मतलब देना, देना, देना, सिर्फ देना, हमेशा देना और सबको देना| फिर मुझे कौन देगा? मुझे कैसे मिलेगा? अगर मैंने सबको देना, देना, देना क्योंकि बार-बार मन में यह संकल्प आता है मैंने इतना किया,मैंने इतना किया, मैंने इसके लिए इतना किया, मैंने परिवार के लिए इतना किया, मेरी तो कोई वैल्यू नहीं है, मुझे तो कोई कुछ नहीं मिल रहा है सिर्फ मैं ही सबको देते जा रही हूं| तो मैं अगर सबको देती गई तो मुझे कहां से मिलेगा?
मान लीजिए हमने किसी पर गुस्सा किया| 1 मिनट आंख बंद कर वो सीन सामने लेके आए, जब आप दुसरो को गुस्सा दे रहे थे, उसको डांट रहे थे, हम किसको डांट रहे थे? हम उनको डांट रहे थे| हम गुस्सा किसको दे रहे थे?हम उनको दे रहे थे| हम देने वाले थे और वो लेने वाले थे| जिसको मिल रहा था सिर्फ आप साक्षी होकर उस सीन को देखा| किस पर असर ज्यादा हो रहा था देने वाले पर या जिसको मिल रहा था? और यहीं बैठे-बैठे उस सीन में जाओ और अपने घर के ड्रावर से पल्स ऑक्सीमीटर उठाएं और जो गुस्सा दे रहा था उसकी भी पल्स देखें और जिसको गुस्सा आ रहा था उसकी भी पल्स देखें और खुद यहां बैठकर उस डिस्प्ले पर देखो किसका हिला हुआ दिखाई दे रहा था, जो गुस्सा दे रहा था या जो गुस्सा ले रहा था| किसकी हार्ट बीट तेज हुई थी, जो दे रहा था या जो ले रहा था| जब मन में असर पड़ रहा है, शरीर पर असर दिखाई दे रहा है तो इस बात को एक बार फिक्स कर लीजिएगा कि जो देता है देते समय सबसे पहले उसको ही मिलता है|
एनर्जी का इक्वेशन यह नहीं है कि मैंने दिया और मैंने आपसे लिया, नहीं| एनर्जी का इक्वेशन है मैंने आपको दिया और देते समय वो मुझसे फ्लो होता हुआ आपके पास गया| तो देना और लेना नहीं है| लेते हुए देना ये एनर्जी का इक्वेशन है तो इस बार फिक्स कर लीजिए रिश्ते का मतलब देना, देना और देना| और सबको वो देना जो हमें चाहिए|