हम सभी ने पानी की एक-एक बूंद को बाल्टी या किसी बर्तन में टपकते हुए देखा है| यह भी देखा है कि इससे बर्तन या बाल्टी पानी से भर गई है| पानी का टपकना तो सिर्फ एक बूंद ही था लेकिन बार-बार लगातार टपकते रहने के कारण वह ज्यादा मात्रा में दिखने लगा| एक-एक बूंद से ही वह 10-20 लीटर की बाल्टी भर गई| यह कैसे हो गया? यह संग्रह के नियम के द्वारा हुआ|
विचारों की ऊर्जा इकट्ठी होती रहती है
एक-एक बूंद जब भाप बनती जाती है तो विशाल बादल का रूप ले लेती है| ठीक वैसा ही परिणाम हमारे विचार के द्वारा भी होता है| विचार अर्थात विचारों की ऊर्जा भी वाइब्रेशन के रूप में इकट्ठी होती रहती है| यदि विचार सकारात्मक होंगे तो संकल्पना की ऊर्जा के इकट्ठे होने के परिणाम भी सकारात्मक होंगे| यदि विचार व्यर्थ या नकारात्मक है तो संकल्पो की ऊर्जा के इकट्ठे होने के परिणाम भी नकारात्मक ही होंगे|
विचारों ऊर्जा लौट कर आती है
विचार ऊर्जा को हम जहां भेजते हैं, वहीं इकट्ठी होती जाती है बशर्ते की कोई दूसरी शक्ति उसके साथ प्रतिक्रिया न करें| क्रिया या प्रतिक्रिया करने से या वापिस भेजने से वह बदल भी जाती है और वापस भी चली जाती है| जाने या अनजाने में विचारों की ऊर्जा जहां, जिसके बारे में भेजी जाती है, वहां संग्रहितभूत होती रहती है| निश्चित मात्रा में इकट्ठी होने के बाद वह ऊर्जा के परावर्तन के नियम के अनुसार स्वतः वापिस उसी स्तोत्र पर लौट आती है जहां से वह उत्पन्न हुई थी|
क्या विचारों का भार भी होता है?
हम सभी प्राय अपने व्यर्थ संकल्पों या व्यर्थ बातों के वर्णन की विवशता या परिस्थिति के बारे में बहानेबाजी लगाते हैं, जैसे कि हम क्या करें जी, बात ही ऐसी थी, यह व्यक्ति ही ऐसा है, यह करता ही ऐसा है, परिस्थिति ही ऐसी थी इसलिए विचार चलते हैं या बातों का वर्णन या चिंतन हो जाता है पर हम चाहते नहीं है| विज्ञान कहता है कि विचारों (संकल्पो) में एक निश्चित किस्म का भार भी होता है| व्यर्थ या अशुभ संकल्पो का इकट्ठा होना अर्थात भार इकट्ठा होना अर्थात भार चढ़ना या चढ़वाना| समर्थ, श्रेष्ठ, शुभ विचारों का इकट्ठा होना अर्थात ऐसी ऊर्जा का इकट्ठा होना जो हल्की होती है और हमें हल्का अनुभव करती है|
विज्ञान व्यर्थ विचारों के बारे में क्या कहता है?
चिकित्सा विज्ञान या मनोविज्ञान की माने तो हम कह सकते हैं कि वर्तमान के दौर में प्रत्येक मनुष्य की मानसिक स्थिति एक निश्चित मात्रा में व्यर्थ वाली रहती ही है| एक समय था जिसे हम सतयुग कहते हैं, वह स्वाभावतः ही व्यर्थ से मुक्त समय था लेकिन वर्तमान समय जो भी मनुष्य है वे व्यर्थ से पूर्णतः मुक्त नहीं है| नंबरवन कम या ज्यादा मुक्त हो सकते हैं पर किसी भी मनुष्य की व्यर्थ से पूर्णतः मुक्त स्थिति नहीं है|
अपूर्णता में पूर्णता देखने का प्रयास करें
भार किसी को नहीं चाहिए| निर्भार सब होना चाहते हैं| जीवन है तो बातें भी होती है| जीवन अपूर्ण है| कोई भी पूर्ण नहीं है| अपूर्णता में अपूर्णता की व्यर्थ बातें ही तो होगी लेकिन हमेशा अपूर्णता में पूर्णता देखने का प्रयास करें| बात ऐसी या वैसी हो, कोई ऐसा या वैसा हो| उस बात का या व्यक्ति का ऐसा-वैसा होना तो हमारे कंट्रोल में नहीं होता है परंतु यह तो हमारे हाथ में होता है कि हम अपने मन में कैसे संकल्प पैदा करें और कैसे ना करें| हमें व्यर्थ, अशुभ, नकारात्मक सोचना है या समर्थ, शुभ, श्रेष्ठ सोचना है, इसका हमें ज्ञान भी है और ऐसे विचारों के परिणाम का भी ज्ञान है| इसलिए श्रेष्ठ-समर्थ संकल्प करते-करते स्वयं को व्यर्थ विचारों की ऊर्जा से निर्भार रखिए| हम जितने हल्के होते हैं उतना जीवन का लुप्त उठा सकते हैं और सुख-शांति-ज्ञान-परमात्मा मिलन का अनुभव बढ़ा सकते हैं| समर्थ, श्रेष्ठ और पॉजिटिव संकल्पो की ऊर्जा इतना बड़ा काम करती है|