विद्यार्थी जीवन में सहनशक्ति को धारण करने से लाभ और उसे बढ़ाने का अभ्यास इस प्रकार है-

 

बड़ा न होता कहने वाला, बड़ा है सहने वाला |

सहाना जो न जाने उसे, जलाए क्रोध की ज्वाला ||

हम इसको एक कहानी से समझ सकते हैं:-
एक साधक योग सिखाने के लिए एक बौद्ध संन्यासी के पास गए | सन्यासी ने उनसे कहा कि वह उन्हें योग सिखाने के लिए तैयार है, परंतु उसके बदले उन्हें पहाड़ पर सन्यासी के लिए एक कुटिया बनाकर तैयार करनी होगी| 1 महीने में कड़ी मेहनत से साधक कुटिया बना दिया, साधक ने सन्यासी को कुटिया दिखाई| कुटिया देखकर संन्यासी ने कहा- इसे अब तोड़ दो, फिर से नई कुटिया बनाओ| साधक सोचा कि शायद कुटिया छोटी बन गई इस कारण सन्यासी तोड़कर दूसरा बनाने के लिए कह रहे| गुरु के आदेश के अनुसार उस कुटिया को तोड़कर दूसरी कुटिया बनाई, फिर गुरु ने इसे तोड़कर तीसरी कुटिया बनाने को कहा | शायद कुटिया बनाने में फिर से कुछ गलती हुई है यह सोचकर साधक ने इस बार पहले से बड़ी तथा सुंदर कुटिया बनाया | परंतु , इस बार भी गुरु उस कुटिया को तोड़कर फिर से नई कुटिया बनाने को बोला| इस प्रकार साधक जब 11वीं कुटिया तोड़ने लगा, तब संन्यासी ने अपनी दोनों बाहें फैला कर उसे अपने सीने से लगा लिया और कहा तुम्हारी शिक्षा अब पूरी हुई है | तुमने मेरे कहने पर अपने मन में किसी प्रकार की नकारात्मक सोच ना लाते हुए खुशी से मेरे आदेश का पालन किया है| इसके लिए तुम्हें बहुत तकलीफ भी सहनी पड़ी परंतु इस सहनशक्ति ने ही तुम्हें विजय किया है फिर बौद्ध संन्यासी ने साधक को सभी सिद्धि और तपस्याओं का रहस्य सिखा दिया|
इस कहानी से यह सीखने को मिलता है| हम चाहे व्यक्तिगत जीवन में हो, विद्यार्थी जीवन में हो, पारिवारिक जीवन में हो अथवा सामाजिक जीवन में हो, सहनशक्ति अत्यंत जरूरी है| सहनशक्ति के अभाव में क्रोध, लड़ाई झगड़ा, मारपीट से जीवन नर्क बन जाता है| पर कभी-कभी हम सोचते हैं कि निर्बल व्यक्ति ही सहन करता है| जो शक्तिवान है , वह भला क्यों सहन करें?
इसको समझने के लिए एक कोटेशन है:-
बड़ा ना होता कहने वाला, बड़ा है सहने वाला |
सहाना जो न जाने उसे, जलाए क्रोध की ज्वाला||

फलदार वृक्ष को ही पत्थर की मार सहन करनी पड़ती है, सुख वृक्ष को नहीं | इस तरह शक्तिशाली व्यक्ति ही सब कुछ सहने में समर्थ होता है | शक्तिहीन व्यक्ति तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त कर देता है | हमारे अंदर शारीरिक कष्ट ,मानसिक पीड़ा ,आर्थिक नुकसान या किसी के द्वारा की गई निंदा- यह सब कुछ सहन करने की शक्ति होनी चाहिए | तभी हमारे चेहरे पर हंसी रहेगी|
सहाना के तीन अक्षरों से ही हंसना बनता है अर्थात जो सहता है , वही हमेशा हंसता है |
सहनशक्ति को बढ़ाने का अभ्यास-
1) विरुधात्मक अथवा कटाक्ष के स्वर सुनकर हमें तुरंत प्रतिक्रियाशील नहीं होना चाहिए|

2) निंदा, स्तुति ,हानि, लाभ, हार जीत जैसी सभी परिस्थितियों में हमें अपना मानसिक संतुलन बनाए रखना चाहिए |
3) जो जैसा कर्म करेगा , उसे वैसा फल मिलेगा | इस धारणा को मन में रखकर कर्म करने चाहिए|

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